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आईआईएम संबलपुर ने आयोजित किया प्रशिक्षण कार्यक्रम

राष्ट्रीय शैक्षिक नीति के अनुरूप आईआईएम संबलपुर ने मालवीय मिशन टीचर ट्रेनिंग प्रोग्राम (एमएमटीटीपी) के तहत ‘भविष्य के नेतृत्व को बढ़ावा देने वाला कार्यक्रम’ (एनएफएलपी) आयोजित किया। यह पांच दिवसीय आवासीय कार्यक्रम था, जिसे विभिन्न विश्वविद्यालयों के संकाय सदस्यों को उच्च शिक्षा संस्थानों (एचईआई) के भीतर प्रशासनिक और शैक्षणिक दोनों भूमिकाओं में प्रभावी नेतृत्व के लिए तकनीकी, प्रबंधकीय और पारस्परिक कौशल से लैस करने के लिए डिजाइन किया गया था। इसका उद्देश्य प्रभावी नेतृत्व की व्यापक समझ विकसित करना, चुनौतियों की पहचान करना, संगठनों के प्रबंधन के लिए रणनीतिक सोच को प्रोत्साहित करना और क्रॉस-फंक्शनल समन्वय, विवादों का समाधान और आम सहमति बनाने के कौशल को बढ़ाना है।

उद्घाटन समारोह की शुरुआत आईआईएम संबलपुर के निदेशक प्रो. महादेव जायसवाल के नेतृत्व में ‘शैक्षणिक प्रशासन और 21वीं सदी की शिक्षा के लिए रणनीतिक नेतृत्व’ पर एक परिचयात्मक सत्र के साथ हुई। अपने संबोधन के दौरान, प्रो. जायसवाल ने व्यवसाय में रणनीति के महत्व पर जोर देने वाले प्रसिद्ध व्यवसाय सिद्धांतकार माइकल पोर्टर का उदाहरण देते हुए कहा, ‘कई सफल कंपनियां, विशेष रूप से चीन और जापान में, रणनीतिक नवाचार के बजाय परिचालन दक्षता पर ध्यान केंद्रित करती हैं। भारतीय उच्च शिक्षा संस्थानों को भी वैश्विक प्रतिस्पर्धात्मकता के लिए रणनीतिक दृष्टिकोण अपनाना चाहिए।’ आईआईएम संबलपुर के निदेशक ने आगे कहा, ‘शोध के साथ नवाचार और वैश्विक प्रतिभा को आकर्षित करके गुणवत्ता और अंतरराष्ट्रीय रैंकिंग में सुधार करने पर और अधिक जोर देना होगा।’

इसके बाद प्रो. पद्मावती ढिल्लों का सत्र ‘खुशहाल कक्षा के लिए कक्षा को मनोवैज्ञानिक रूप से सुरक्षित और अनुकूल बनाना’पर हुआ। दिन का समापन प्रो. दिवाहर सुंदर नादर द्वारा ‘संस्थान के वित्त और बजट-निर्माण व वित्तीय प्रबंधन को समझना’पर एक गहन सत्र के साथ हुआ। दूसरे दिन की शुरुआत प्रोफेसर अत्री सेनगुप्ता द्वारा ‘प्रदर्शन गतिशीलता और नेतृत्व प्रबंधन’पर जानकारीपूर्ण सत्र के साथ हुई, जिसके बाद प्रोफेसर शिल्पी कलवानी और प्रोफेसर सौम्या रंजन साहू द्वारा क्रमशः ‘शैक्षणिक नेताओं के लिए प्रभावी संचार’और ‘प्रबंधन योजना, कौशल और उच्च गुणवत्ता वाले शोध पत्रों का प्रकाशन’ पर सत्र आयोजित किए गए। तीसरे दिन, प्रोफेसर सौम्या जी देब ने ‘संस्थान की मान्यता और चुनौतियां’ पर एक सत्र के साथ संस्थागत चुनौतियों पर प्रकाश डाला, जिसके बाद प्रोफेसर आरके पाढ़ी द्वारा “संस्थानों के प्रदर्शन को रैंकिंग और सुधारना’और प्रोफेसर पूनम कुमार द्वारा ‘नए और महत्वपूर्ण तरीकों से अकादमिक उत्कृष्टता को बढ़ावा देना’ पर एक जानकारीपूर्ण सत्र आयोजित किया गया। चौथे दिन प्रो. शिखा भारद्वाज द्वारा ‘शैक्षणिक संस्थानों में बदलाव का प्रबंधन’ पर एक व्यावहारिक सत्र के साथ प्रबुद्ध प्रतिभागियों का मार्गदर्शन किया गया, इसके बाद प्रो. पद्मावती ढिल्लों का सत्र ‘शैक्षणिक संस्थान में टीम प्रबंधन’और प्रो. शिल्पी का सत्र ‘स्वयं, समय और तनाव का प्रबंधन’पर था। कार्यक्रम का अंतिम दिन प्रो. सुमिता सिंधी द्वारा प्रस्तुत ‘हितधारकों (छात्र/समुदाय/पूर्व छात्र) को जोड़े रखना’ पर केंद्रित था। इसके बाद प्रो. सिद्धार्थ माझी ने ‘डिजिटल युग में संस्थान ब्रांड का निर्माण’पर एक सत्र का नेतृत्व किया। प्रशिक्षण का समापन ‘शोध और परामर्श परियोजनाओं को डिजाइन/तैयार करना और वितरित करना’पर एक सत्र के साथ हुआ, इसके बाद प्रो. पूनम कुमार और प्रो. आरके पाढ़ी द्वारा मूल्यांकन की गई परियोजनाओं प्रस्तुतियों का आयोजन किया गया।

कार्यक्रम में आईआईटी, जोधपुर; बनारस हिंदू विश्वविद्यालय, बनारस; मगध विश्वविद्यालय, बोधगया; विश्वेश्वरैया तकनीकी विश्वविद्यालय, बेलगाम; रेवेंशॉ विश्वविद्यालय, कटक; वीर सुरेन्द्र साई प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय, बुर्ला; राजेंद्र विश्वविद्यालय, बोलनगीर; रमादेवी महिला विश्वविद्यालय, भुवनेश्वर और केंद्रीय संस्कृत विश्वविद्यालय, पुरी ने भाग लिया।

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