दतिया 30 मई : जिले की निचरोली (तहसील भांडेर) में चल रही 7 दिवसीय श्रीमद् भागवत कथा के अंतिम दिन प्रख्यात कथावाचक श्रीनिवास पाठक ने भगवान श्रीकृष्ण और सुदामा की मित्रता की बड़ी ही मार्मिक और करुण कथा सुनाई कथा के विभिन्न प्रसंगों में उन्होंने बताया कि कैसे सुदामा से परमात्मा ने मित्रता का धर्म निभाया। राजा के मित्र राजा होते हैं रंक नहीं, पर परमात्मा ने कहा कि मेरे भक्त जिसके पास प्रेम धन है वह निर्धन नहीं हो सकता।
कृष्ण और सुदामा दो मित्र का मिलन ही नहीं जीव व ईश्वर तथा भक्त और भगवान का मिलन था। जिसे देखने वाले अचंभित रह गए थे। आज मनुष्य को ऐसा ही आदर्श प्रस्तुत करना चाहिए।उन्होंने आगे कहा कि कृष्ण और सुदामा जैसी मित्रता आज कहां है। यही कारण है कि आज भी सच्ची मित्रता के लिए कृष्ण-सुदामा की मित्रता का उदाहरण दिया जाता है। द्वारपाल के मुख से पूछत दीनदयाल के धाम, बतावत आपन नाम सुदामा, सुनते ही द्वारिकाधीश नंगे पांव मित्र की अगवानी करने पहुंच गए।
लोग समझ नहीं पाए कि आखिर सुदामा में क्या खासियत है कि भगवान खुद ही उनके स्वागत में दौड़ पड़े। श्रीकृष्ण ने स्वयं सिंहासन पर बैठाकर सुदामा के पांव पखारे। कृष्ण-सुदामा चरित्र प्रसंग पर श्रद्धालु भाव-विभोर हो उठे।
रुकमनी भी यह देखकर आश्चर्य चकित हो गयीं कि इस गरीब ब्राहमण ने ऐसा कौन सा सद्कर्म किया है जो स्वयं लक्ष्मीपति नारायण इसकी सेवा करते हैं. आजकी कथा में नव्योगेश्वर संवाद, दत्तात्रेय के 24 गुरुओं की कथा और परीक्षित मोक्ष का वर्णन किया अंत में एक श्लोक में पूरी भागवत का सार बताते हुए कहा कि मन से, वचन से, शरीर से बुद्धि से तुम जो भी करते हो वो सभी नारायण के चरणों में समर्पित करते चलो यही भागवत धर्म है
पं. श्री निवास पाठक ने कहा कि श्रद्धा के बिना भक्ति नहीं होती तथा विशुद्ध हृदय में ही भागवत टिकती है। भगवान के चरित्रों का स्मरण, श्रवण करके उनके गुण, यश का कीर्तन, अर्चन, प्रणाम करना, अपने को भगवान का दास समझना, उनको सखा मानना और भगवान के चरणों में सर्वस्व समर्पण करके अपने अन्त:करण में प्रेमपूर्वक अनुसंधान करना ही भक्ति है।
कथा स्थल पर भक्तों की भारी भीड़ उमड़ी, जो श्रीनिवास पाठक के ओजस्वी और मधुर वाणी में श्रीमद् भागवत कथा सुनने के लिए एकत्रित हुई थी। कथा के प्रत्येक प्रसंग को सुनकर श्रोताओं के चेहरे पर भक्ति और आस्था की झलक स्पष्ट दिखाई दे रही थी। कथा के दौरान भजन, कीर्तन और संगीत ने वातावरण को और भी आध्यात्मिक और दिव्य बना दिया।
कथा के पश्चात भगवान श्रीकृष्ण की महाआरती की गई।